सारी शापित नदियों के जल से
धोना अपना मुँह
उनके सारे भँवर
सजाना अपने कटावों पर
लेकर उनका सारा रौद्र कलरव
हुंकार में भर लेना अपनी
मथना देह नदियों की
देखना उन्हें प्रेम में
नायग्रा
बांध लेना बिजलियों को
भव्य भुजाओं में
लिखना इतिहास नियंडरथल को खोजते
जाना और पीछे
वे तब से बही आती हैं
लिखना भौतिकी
फेंकना कंकड़ देखना तरंग
वर्तमान से इतिहास में काँपती चली जाती हैं
घुल जाना नदी में
तुम परिभाषित करना प्यार
और नफरत भी
तुम पार करना नदियाँ
वे चुपचाप गुजरती होंगी
तुम खेलना वे अट्टहास करती होंगी
तुम चूमना वे भँवर हो जाती होंगी
तुम भूलना नदियों को
तुम याद करना उन्हें रोते हुए
तुम लिखना उनपे कविता कि उन्हें चाहिए न्याय
होना नाराज कि वे तुम्हारे बिना भी हैं बहतीं
आखिर...
तुम डरना नदियों के बहने से...